असम के अहोम योद्धाओं की अमर गाथा: जब लचित बोरफुकन ने मुगलों को पराजित किया

असम के अहोम योद्धाओं की अमर गाथा: जब लचित बोरफुकन ने मुगलों को पराजित किया


पूर्वोत्तर भारत का स्वर्ग, असम, सदियों से अपने प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध संस्कृति, और वीरता की गाथाओं के लिए प्रसिद्ध है। असम के इतिहास में सबसे चमकदार अध्याय अहोम राजाओं का रहा है, जिन्होंने लगभग छह शताब्दियों तक इस धरती पर शासन किया और मुगलों जैसे शक्तिशाली साम्राज्य को पराजित कर असम की स्वतंत्रता और संस्कृति की रक्षा की।

अहोम वंश: एक संक्षिप्त परिचय

अहोम वंश की स्थापना 1228 ईस्वी में सुकाफा ने की थी, जो कि ताई शान वंश का एक योद्धा था। उन्होंने असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में अपना साम्राज्य स्थापित किया। इस साम्राज्य का शासन लगभग 600 वर्षों तक चला। इस दौरान अहोम वंश ने न केवल अपनी सीमाओं का विस्तार किया बल्कि अपने शत्रुओं, विशेषकर मुगल साम्राज्य, से असम को सुरक्षित रखा। अहोम राजाओं के शासनकाल में असम में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास हुआ।

मुगलों का आक्रमण और अहोम सेना की रणनीति

17वीं शताब्दी में, जब मुगल साम्राज्य अपनी शक्तिशाली सेना के बल पर भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना अधिकार जमाने में लगा हुआ था, असम उनके लिए अगला लक्ष्य बन गया। असम की समृद्धि और ब्रह्मपुत्र घाटी की सामरिक स्थिति मुगलों के लिए महत्वपूर्ण थी। मुगल सेना के जनरल राजा रामसिंह प्रथम के नेतृत्व में असम पर हमला किया गया। मुगलों ने सोचा कि उनकी बड़ी सेना और अत्याधुनिक हथियारों के सामने अहोम सेना टिक नहीं पाएगी, लेकिन उन्होंने असम की मिट्टी और उसके वीर योद्धाओं के साहस को कम आंका।

सराइघाट का युद्ध, जो 1671 में लड़ा गया, भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक है। इस युद्ध में अहोम सेना ने अपने प्रमुख सेनापति लचित बोरफुकन के नेतृत्व में मुगल सेना को पराजित किया। यह न केवल एक युद्ध था, बल्कि असम की स्वतंत्रता, आत्म-सम्मान और गौरव की रक्षा की गाथा थी।

लचित बोरफुकन: एक महान सेनापति की प्रेरक गाथा

लचित बोरफुकन का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनका जन्म 24 नवंबर 1622 को हुआ था और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा असम के संरक्षण और मुगलों से रक्षा करने में बिताया। लचित ने अपनी शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण अहोम राजा की राजधानी में प्राप्त किया था। वे अपने साहस, रणनीति, और नेतृत्व क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे।

सराइघाट के युद्ध के दौरान लचित की वीरता और नेतृत्व अद्वितीय था। उनके कुशल नेतृत्व में अहोम सेना ने न केवल मुगलों की विशाल सेना को हराया, बल्कि असम की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा। लचित बोरफुकन की यह गाथा प्रेरणा और साहस का प्रतीक बनी रही।

एक ऐसा क्षण आया जब लचित गंभीर रूप से बीमार थे, लेकिन उन्होंने असम की स्वतंत्रता को अपने जीवन से पहले रखा। उन्होंने प्रसिद्ध रूप से कहा, "देश मेरी जान से पहले है।" यह वाक्य उनकी देशभक्ति और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।

सराइघाट का युद्ध: जल युद्ध में अहोम सेना की कुशलता

सराइघाट का युद्ध असम के ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर लड़ा गया। यह युद्ध असम के इतिहास में विशेष स्थान रखता है क्योंकि यह उस समय की सबसे महत्वपूर्ण सामरिक लड़ाई थी। लचित बोरफुकन ने इस युद्ध में असम की नदी प्रणाली का कुशलता से उपयोग किया। मुगल सेना को नदी मार्ग से असम पर आक्रमण करना था, लेकिन लचित ने ब्रह्मपुत्र की गहराई और उसकी तेज धाराओं का उपयोग करते हुए अपनी सेना को युद्ध में उतारा।

अहोम सैनिकों ने छोटी नौकाओं का इस्तेमाल किया, जो मुगल सेना की बड़ी नौकाओं की तुलना में तेज और सुविधाजनक थीं। लचित बोरफुकन ने मुगलों पर अचानक और गुप्त हमले किए, जिससे मुगल सेना को भारी नुकसान हुआ। ब्रह्मपुत्र की धाराओं और असम की घनी हरियाली ने अहोम सेना को गुप्त रूप से हमला करने का अवसर प्रदान किया, जिससे मुगल सेना पराजित हो गई।

मुगल सेनापति की पराजय और अहोम की विजय

मुगल सेनापति राजा रामसिंह, जो अहोम सेना की तुलना में अधिक संसाधनों और सैनिकों के साथ आया था, को विश्वास था कि असम पर विजय पाना आसान होगा। वह अपनी जीत को इतना निश्चित मानता था कि युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया जब वह हुक्का पीते हुए आराम कर रहा था, यह सोचते हुए कि विजय केवल औपचारिकता है। लेकिन अहोम सेना के तेज हमलों ने मुगलों की योजना को तहस-नहस कर दिया।

लचित बोरफुकन की रणनीति और सेना की बहादुरी के सामने मुगलों की विशाल सेना टूट गई। उनकी नावें ब्रह्मपुत्र की गर्त में समा गईं और उनकी सेना में हाहाकार मच गया। रामसिंह को पीछे हटना पड़ा और असम की धरती एक बार फिर विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षित रही।

अहोम वंश की सांस्कृतिक और राजनीतिक धरोहर

अहोम वंश का योगदान केवल सैन्य विजय तक सीमित नहीं था। उन्होंने असम की संस्कृति, भाषा, और प्रशासनिक ढांचे को भी समृद्ध किया। अहोम राजा सांस्कृतिक संरक्षक थे, जिन्होंने कला, साहित्य, और वास्तुकला को प्रोत्साहित किया। उनके शासनकाल में असम में कृषि, व्यापार, और उद्योग का भी विकास हुआ।

अहोम प्रशासन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता थी उनका अद्वितीय 'पाइक' प्रणाली, जिसमें नागरिकों को सेना में सेवा करने के लिए तैयार किया जाता था। यह प्रणाली असम को सैन्य दृष्टि से मजबूत बनाती थी और समाज के हर वर्ग को सेना से जोड़ती थी।

असम की स्वतंत्रता की रक्षा: अहोम की एक अद्वितीय गाथा

अहोम राजाओं की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने लगभग 600 वर्षों तक असम को मुगलों और अन्य विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखा। उनकी सैन्य रणनीति, जल युद्ध में कुशलता, और देशभक्ति ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे प्रमुख राजवंशों में स्थान दिलाया।

असम की धरती पर अहोम वंश की विजय गाथा केवल युद्धों की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक महान परंपरा, संस्कृति, और धरोहर की रक्षा की गाथा है। अहोम राजाओं ने अपने राज्य को न केवल मुगलों से बचाया बल्कि असम की स्वतंत्रता और संस्कृति को भी संरक्षित किया।

लचित दिवस और उनकी अमर विरासत

असम में हर साल 24 नवंबर को लचित दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि लचित बोरफुकन और उनकी वीरता को याद किया जा सके। यह दिन असम के युवाओं को प्रेरणा देता है और उन्हें उनके इतिहास की महानता से अवगत कराता है। लचित बोरफुकन का जीवन और उनकी देशभक्ति की गाथा आज भी असम और भारत के हर नागरिक के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।



निष्कर्ष: असम की अमर गाथा

असम के अहोम राजाओं की गाथा केवल इतिहास का एक पृष्ठ नहीं है, यह साहस, प्रेम, और निष्ठा की कहानी है। उन्होंने असम को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाया और अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा की। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर रहेगा, और उनकी वीरता की गाथा सदियों तक गूंजती रहेगी।

असम की ब्रह्मपुत्र नदी की लहरों में आज भी अहोम राजाओं की वीरता की गूंज सुनाई देती है। उनका अदम्य साहस और देशभक्ति हमें सिखाती है कि जब संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी शक्ति हमें नहीं हरा सकती। अहोम राजाओं का इतिहास केवल असम की धरती पर नहीं, बल्कि हर भारतीय के हृदय में अमर रहेगा।

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